"बात एक बेटी की"
इतना पताडा जा रहा है। क्यू मुझे, इतना सताया जा रहा है क्यू मुझे,
इतना बेबस और लाचार बताया जा रहा है। क्यू मुझे..!
इतनी बेबसी, इतनी लाचारी से देखा क्यू जा रहा है। मुझे,
इतना कुछ होता है। जब मेरे साथ गलत तब ही क्यू याद किया जा रहा है। मुझे,
मेरी आवाज़ को इतना क्यू दबाया जा रहा है। मेरी बातो को क्यू इतना नजर अंदाज़ क्या जा रहा है।
कब तक मुझे लूटोगे ए हैवानों। कब तक मेरे साथ खेलते रहोगे हैवानों।
ना जाने कितने दिन, ना जाने कितनी राते, गुजारे मैने बेबस और लाचार बनकर, किसीने नही पूछा हाले बैया मेरा, दिल पर हाथ रख कर..!
नोचते रहे हैवान मुझे आखरी वक़्त तक, नही बदला है।"स्वयमभु" रुख आदमीओ का अबतक.!
अश्विन राठौड़
"स्वयमभु"