like and share Justice for manisha valmiki
वो मासूम सी नाजुक बच्ची, एक आँगन की कली थी वो।
माँ बाप की आँख का तारा थी, अरमानो से पली थी वो।।
जिसकी मासूम अदाओ से, माँ बाप का दिन बन जाता था।
जिसकी एक मुस्कान के आगे, पत्थर भी मोम बन जाता था।।
एक महकती फूल सी बच्ची पे, ये कैसा अत्याचार हुआ।
एक बच्ची को बचा सके ना, कैसा मुल्क लाचार हुआ।।
उस बच्ची पे जुल्म हुआ, वो कितनी रोई होगी।
मेरा कलेजा फट जाता है,तो माँ कैसे सोयी होगी।।
जिस मासूम को देखके मन में, प्यार उमड़ के आता है।
देख उसी को मन में कुछ के, हैवान उत्तर क्यों आता है।।
कपड़ो के कारण होते रेप, जो कहे उन्हें बतलाऊ मै।
आखिर कब तक बच्ची कोा, घर में रख पाऊँ मै।।
गर अब भी हम ना सुधरे तो, एक दिन ऐसा आएगा।
इस देश को बेटी देने मे, भगवान भी जब घबराएगा।।
उसकी मुट्ठी में बंद है नफरत
बलात्कारी की भूमिका में उतरने के लिये काफी है
कि क्या वह देख पाता है तुम्हारी देह को,
छेदने वाली मशीन की नज़र से,
दाहक गैस लैम्प निगाह से,
अश्लील साहित्य और गन्दी फिल्मों की तर्ज़ पर!
हा डरती हुँ
खुद
को
लङकी
जानकर
,
-Maya