सामुहिक दुराचार,
फिर मारने के लिए गला घोंटने लगे तो जीभ भी काट दी,
दर्द से बेहाल होकर विरोध किया तो तुमने रीढ़ की हड्डी भी तोड़ दी।
अंततः आज उसकी रूह ने उसकी देह को छोड़ दिया।
यही देह चाहिए थी ना तुम्हे?
जाओ अब फिर करलो बलात्कार......
अब विरोध भी नही कर सकती क्योंकि भीतर प्राण नही है।
दिन प्रतिदिन राक्षसी परवर्ती से भरता जा रहा है इंसान।
कहने को इंसान, कर्म हैवानों से भी परे।
एक एक अपराधी के साथ क्रूरतम व्यवहार होना चाहिये।
योगी जी-कहीं पलटा दो इनकी भी गाड़ी,
इन दुराचारियो की आवश्यकता नही इस धरती पर।।