" प्यासा समंदर "
समंदर में रहकर हम इतने प्यासे थे
एक लब्ज पें जां न्योछावर कर देते थे
हर शक्स के पास उम्मीदें ले जाते थे
जैसे किनारा मिला छूटी नांँव हम थे
जैसे रातो में रोता चांद वैसे हम थे
सूबह में जाने हम खिलते सितारे थे
हमसे कोई सिखता था खूश रहना
दिल में तो हमारे दु:खो के भंवरें थे
बूरे वक्त में किसी के टाईम पास थे
'माहि' अच्छे वक़्त में कहाँ याद थे
-पवार महेन्द्र
-Pawar Mahendra