#अस्पष्टता
प्रिये तेरी उन उपस्थिति में
मन में कैसी उथल-पुथल
श्वोसों में कैसी बोखलाहट ,
आंखों में कैसी गरमाहट
पलकों में कैसी फड़फड़ाहट ,
मन में कैसी तिलमिलाहट
प्रेमके अतिरेक बढ़कर ,
हृदय की ऐ कैसी व्यवस्था ?
क्या.. तुम्हें क्षणिक पता हैं ?
अस्पष्ट व्यवहार छोडकर
स्पष्ट व्यवधान जानकर ,
उलझा रखा भावनात्मक व्यवसाय
मस्तिष्क के असंख्य छिद्रों में जाकर ,
छिन्न भिन्न कर ड़ाला सपनों का शहर
अब क्षण-क्षण जीनें में क्या रखा हैं ?
जब मरकर भी यहाँ वहाँ भटकता रहूँगा ??
- © शेखर खराड़ी (२७/९/२०२०)