मन ही मन मैं,
तेरा नाप लेकर,
बनाती रही
तेरे तन के कपड़े
नहीं ये छोटा होगा,
नहीं ये होगा बड़ा,
करती खुद से
जाने कितने झगड़े
तन के कपड़े …!
….
तू गोरी होगी?
या सांवरी?? मैं भी बावरी बन
सजाती रही गुडि़या पे
तेरे वो कपड़े
तन के कपड़े …!!
…
झलक तेरी
आंखों में लेकर सोती तो,
ख्वाबों में फिरती
तुझको पकड़े-पकड़े
तन के कपड़े …!!!
...
मैं अपना बचपन
फिर से जी लूंगी
तू आ जाएगी तो,
मिट जाएंगे
मन के ये सारे झगड़े
तन के कपड़े …!!!!
…