दोहाश्रित सजल
पदांत -आस
कुआँ पास आता नहीं, जब लगती है प्यास।
प्यासे को जाना पड़े , सदा उसी के पास।।
संस्कृतियाँ बसतीं रहीं, सरिताओं के तीर।
नदी सरोवर से रहा, खुशियों का अहसास।।
नदी जलाशय प्रकृति सब, ईश्वर का वरदान।
स्वच्छ रखें निर्मल सदा, इससे है मधुमास।।
नीर स्वच्छ सबको मिले, मानव रहें निरोग।
रोग शोक से मुक्त हों, जीवन जीते खास।।
जल को संचित कीजिये, नहीं बहाएँ व्यर्थ।
जीवन में अनमोल है, वरुण देव का वास।।
जीवन में जल का सदा, होता बड़ा महत्व।
जलचर,नभचर जीव सब,जल बिन रहें उदास।।
पुरखे भी बनवा गए, कूप और तालाब।
संरक्षित इनको करें,भग जाते संत्रास।।
जल बिन जीवन सून है, रहते सब बैचेन।
अमरित की बूँदे यही, भर देतीं उल्लास।।
मनोज कुमार शुक्ल " मनोज "