बात ये नहीं कि किस के कितने कपड़े खुले हैं ,
बात ये है कि आप के विचार कितने बुरे हैं
स्कर्ट से सजे हैं या बुर्के में ढके हैं,
सब औरत के जिस्म एक ही मिट्टी से बने हैं
कहने को बीवी कहने को बहने हैं,
हर रिश्ते से अलग पर कुछ उस के भी सपने हैं
जो जीता प्यार से तो जन्नत कदमों में है,
जो दिखाया जोर तो महाभारत बनने में हैं
क्यों कहे जमाना कि हर जंग के पीछे औरत का हाथ है,
सच तो ये है कि बड़ी अजीब मर्दों की ये जात है
जो दिखाई अपनी जिद तो द्रौपदी भी बस इक दाव है,
जो आई अपनी इज्जत बचाने पर तो सीता में भी पाप है
ये आज की नहीं सदियों की बात है ,
नशा औरत में नहीं,नशा नीयत में होता है
जो चाहता है सिर्फ जिस्म को वो जानवर होता है
जो चाहता है रूह को वो वाकई असली मर्द होता है.