# आज की प्रतियोगिता "
# विधवा "
* कविता *
विधवा एक ,अपशुकन नहीं है ।
फूल सी नाजुक ,चाँद सी सुदंर है ।।
ममता की मूरत ,वात्सल्य की देवी है ।
उस पर ये कैसा ,ग्रहण लगा है ।।
नारी तो विधाता ,की अनमोल कृति है ।
जिसे विधाता के ,क्रुर हाथों ने छला है ।।
उसे खिलने से ,पहले ही मुरजा दिया है ।
उसमें उसका ,क्या कसूर है ।।
वह क्या हमारी ,जैसी नारी नहीं है ।
अपनी धटिया विचारधारा ,अब बदलो ।।
वह तो आपके प्रेम ,की भुखी है ।
उसे पुनः विवाह ,करने की आज्ञा दो ।।
वह आपके अपनत्व ,की प्यासी है ।
वह आपका प्रेम ,पाकर खिलखिल जायेगी ।।
वह भी समाज ,का अभिन्न अंग है ।
उसे गर्त में जाने ,से रोको ।।
वह समाज के प्रताडना ,से बच जायेगी ।
आपका उपकार मान कर ,अपना दुःख भुल जायेगी ।।
-Brijmohan Rana