मंदिर
हर शरीर मंदिर सा पावन,
हर बालक उपकारी है।
जिस घर में यह नियम बना ,
वहाँ हर बालक गुणाकरी है।
वहाँ सवेरा शंख बजाता.
और लोरी गाती शाम है ।
पवित्र है इस देश की माटी,
उज्ज्वल और अविराम है ।
हर ऑंगन में चिड़िया चहकें,
हर दरवाज़े आती गाय है।
वहॉं होती सेवा मातपिता की,
वह मंदिर और स्वर्ग धाम है ।
हर चरित्र मंदिर सा पावन,
हर बाला कल्याणी है ।।
आशा सारस्वत
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