मेरे सच बोलने का साहस
दम तोड़ रही है।
बेबाक लिखने की कलम,
साथ छोड़ रही है।
आंसू बहाते हुए लेखनी कहती हैं।
मत लिख सखी,
सच्चाई अपनी कलम से
नहीं तो सारी दुनिया के लोग तुझे ही
नंगा खड़ा कर तमाशा देखेंगे।
इस पुरूष प्रधान समाज में,
औरत के अधिकार नगण्य है।
हमदर्द जो घर के बाहर,
लोगों से हमदर्दी दिखाते है।
उनके घर के कोने भी
दर्द से सिसक रही है।
-Suneeta Gond