जो जीने की सही राह दिखाये,
ग़लत और सही में फर्क समझाये,
वही शिक्षक हैं जैसे मां पहला पड़ाव है।
इसलिए मां को पहली शिक्षिका कहते हैं।
जो किताबी ज्ञान से अवगत कराये,
समाज में गर्व से जीने लायक बनाए,
वो शिक्षक हैं, जैसे अध्यापक ये दूसरा पड़ाव। ससुराल में हर बात पर
ताने मारते हुए सास यही कहती हैं
तेरी मां ने क्या सिखाया है।
सच का आईना दिखाती हुई सही तो कहती है।
मां ने तो संस्कार सिखाए है,
सही मायने में षड़यंत्र ही सिखाना था।
जेठानी कहती हैं तेरे
मायके में ऐसे ही बोलते है।
मां ने तो सहनशीलता सिखाई थी
मां को संघर्षशील बनाना था।
सही मायने में ससुराल ही विद्यालय है।
ये तीसरा पड़ाव है।
औरत की तो अंतिम सांस
से भी बहुत शिकायत है।
आज ही मौत हुई कल पति व्याह को तैयार है।
यही सच्चा और अंतिमपड़ाव है।
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-Suneeta Gond