#आराम
चिंताओं से युक्त मनुज को चैन नहीं हैं,
जैसे नेत्र विहीनों का दिन रैन नहीं हैं।
मल से भरे हुए घट में जल कहां भरेगा,
आकुलता युत प्राणी को सुख कहां मिलेगा।
इच्छाओं से भरा हुआ मन कभी ना सोता,
इच्छाओं की आशा में वह सदा ही रोता।
जिसके जीवन में इच्छाओं का हुआ अंत है,
उसका जीवन ही सुखमय है और वही संत है।
धन से साधन मिल जाते पर शांति ना मिलती,
उसके लालच में जीवन को कांति ना मिलती।
धन से सुख होता तो क्यों ये ऋषि त्यागते,
सुख की आशा में जग से क्यों दूर भागते।
येन केन और प्रकारेण जैसे कर पाओ,
अपने जीवन से चिंता का बोझ हटाओ।
आकुलता से रहित जीव जब सुख को पाता,
जीवन में वह सुख ही सत् आराम कहाता।
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