फिर से कर दे तेरी कलाकारी
वाह रे ऊपर वाले, कमाल है तेरी कलाकारी,
कहीं पर कर दी तपती धरती, तो कहीं वर्षा भारी ।
कहीं बिछा दी चादर सफेदी,
कहीं सागर की गागर में डूबी धरती सारी ।
तो थोड़ा यूं भी कर देता,
कभी वों लेते तपन हमारी,
हम भी लेते सर्दी कड़कड़ाती ।
हम भी देख लेते सरल कहां है,
जीवन अति विस्मयकारी ।
सच तो यें है भगवन,
तेरी कायनात है निराली ।
रंग भर दिए अलग-अलग ,
सब की खुशबू न्यारी ।
कभी तू भी तो नीचे आ ,
रुक, थोड़ा ठहर भी ।
तू भी तो देख ,
जीना अब सरल नहीं ,
जीवन हुआ कितना भारी ।
हर तरफ दुख है तकलीफ है,
नित नई बीमारी का आतंक है ।
जिंदगी हो गई सस्ती,
मौत का तांडव है ।
यह सब देख क्या ,
तेरी आंखों में भी नहीं आते आंसू,
थोड़ी तो कर दे रहमत ,
थोड़ा वक्त तो दे संभालने में ।
तू तो भगवन है तुझसे ही सब संभव है,
फिर से कर दे तेरी कलाकारी ।
ना कोई दुख हो ना बीमारी ,
फिर से हरी भरी ,
फूलों सी खिलती हो धरती हमारी ।
फिर से जीवन बन जाए मधु वन ,
चारों ओर हो खुशहाली ।
सुन ले इतनी अर्ज हमारी ,
फिर से कर दे तेरी कलाकारी ।
यह कविता एक प्रार्थना है जो इस समय धरती पर बसने वाले समस्त प्राणियों के द्वारा की जा रही है कि हे प्रभु हमारी गलतियों को क्षमा करें और हमें अपनी गलतियां सुधारने का एक मौका और दे । हे प्रभु हमें इस दुख , बीमारी से मुक्ति दिलाओ । अपनी कला की कलाकारी से फिर से इस धरती को सुंदर बना दो , जीवन को फिर से मधुबन बना दो ।
-Vaishnav