इस तरह से कोई अपना बन जाता है।
जैसे लगता है कई जन्मों से साथ जुड़े हुए हैं।
हमारी तरफ से क्या बाकी रह जाता है।
की हम से भी आगे दुनिया दिखती है।
हम तो बस जहा जीते हैं वहीं सब है,
ऐसा मान लेते हैं और वहीं ठहर जाते हैं।
हम तो यह समझे उससे पहले तो सब,
अपने मुनाफे की ओर आगे निकल जाते हैं।
और फिर अचानक से पराया लगने लगते है।
साथ होते हुए भी एक खालीपन लगता है।