# बसना स्त्री के संसार का
सुनो
मंगल ध्वनि सुनो,
यह स्वर है
नव निर्माण का
नव स्थापन का,
आज फिर बस रहा है
एक स्त्री का घर।
मंत्रों के स्वर से
गुंजायमान है आसमां,
लीपे हुए आंगन में,
अप्पन पड़ा है सतरंगी,
लाल साड़ी में,
चमकी है धवल दंतपंक्ति;
वर्षों दूसरे के घर रहते हुए
दूसरे की शर्तों पर,
नियमों पर जीते हुए,
उजाड़ा था उसने
अपने मन का घर
कई कई बार;
सालों से नकारे जाते
उसके व्यक्तित्व,
उसकी महत्वाकांक्षा,
और अपने बच्चे को
पूर्ण नागरिक बनाने की
मजबूत इच्छाशक्ति ने,
उसे प्रेरित किया है,
अपना घर बसाने को;
यहां प्रेम के नियम होंगे,
विकास के अवसर होंगे,
मनुष्य का निर्माण होगा,
एवम् सौंदर्य पूर्ण संसार का
सृजन होगा;
बस निकल पड़ी है वो
अपने साथ लेकर
अपनी शिक्षा,
अपनी किताबें
अपने संस्कार,
और अपना बच्चा;
इस सशक्त स्त्री के पास है
उसकी दृढ़ इच्छा शक्ति,
आगे बढ़ने की तीव्र ललक,
उसका आत्माभिमान,
और उसकी आर्थिक स्वतंत्रता।
उसकी खिलखिलाहट में,
सुनाई देती है
नव विश्व निर्माण का आह्लाद,
स्वछंद नव चेतना की किलक,
और उसके बसने की खुशी;
अगर बसना है तुम्हें
इस सुंदर संसार में
तो आना
हृदय भर प्यार लेकर;
समर्पित सहचर भाव लेकर,
और मुट्ठी भर
पलाश के फूल लेकर।