बेखबर दुनिया की हर साजिशों से हूं।
पर वाकिफ अपनों की हर दगाबाजी से हूं।।
दबा कर बैठा है, कोई अपने दिल में रंजिशों के खंजर।
मुनासिब नहीं मिल जाए उसको फतह का यह मंजर।
लाज़िम है उसकी हर बदलती चाल का ठंग,
पर वाकिफ मैं भी उसके हर वार से हूं।
बेशक,बेखबर दुनिया की हर साजिशों से हूं।
पर वाकिफ अपनों में छुपे हर दगाबाजीयों से हूं।।
साहिबा सिंह