मैं भी जाता नही, कोई आता नही
कोई शाम ओ शहर ,अब सजाता नही
जब वो था शहर मैं ,दीद हो जाती थी
हाल ए दिल पूछने,अब कोई आता नही
ज़ख्मों को छेड़ कर ,खुश तो होते हैं सब
कोई ज़ख्मों पर मरहम , लगाता नही
वो अलग दौर था, हर कोई संग था
संग सहारे को अब , कोई आता नही
वक़्त को भी ना दी , तवज्जों कभी
वक़्त बीता हुआ ,लौट आता नही ।।
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