वक्त को भी बेदर्द पाया,
नसीब की तरह।
सतरंगी ग़म विरासत में पाया,
इन्द्रधनुषी छटा की तरह।
दिल पर जख्मों के छाप ने
दर्द भरें सिहरन से रूबरू कराया
किसी मरीज की तरह।
न जाने कब हंसी थी याद भी नहीं
हंसना तो दूर होंठों ने
मुस्कुराना ही छोड़ दिया।
जिन्दा लाश की तरह।
सजोये हुए अरमान भी तड़पते हैं,
गरजती बिजली की तरह।
सिन्दूर सुलगता है मांग में,
गीली लकड़ी की तरह।
गुजरे लम्हों के साथ खौंफ भी
खौफ़जदा है।
डरावने ख्वाब की तरह,
कही फिर से तेरा अरमां सो न जाए,
कुचले हुए जज़्बात की तरह।