मैं सृष्टि में हर पल किसी न किसी अंशीय स्वरुप जन्म लेता हूं, मैं आरोपित होता हूं तुम में बीज स्वरुप, मैं बोया जाता हूं तुम्हारे अंतर आत्मा में मगर मैं इंतज़ार करता हूं की क्या तुम मुझे वह अनुकूलता दे सकते हो जिससे मैं बीज से वृक्ष बन पाउ तुम में, मैं खुद के अस्तित्व में आ सकूं।
क्या तुम प्रेम, करुणा, दया की भावना में हृदय को बहा सकते हो? किसी मित्र को पथ्थर की सौगात के बदले अपना रत्न भेट कर सकते हो? अपनी सखी के संकट के सामने रक्षा का आवरण बने खड़े रह सकते हो? अन्याय के विरुद्ध अपनों से लड़ सकते हो? सयम से किसी अपने के अपशब्द सह सकते हो? अपने किये हुए उपकारों के बदले लांछन का दाग सह सकते हो? अपनी माता के अलावा विश्व की समस्त स्त्रियों को माँ के रूप में स्वीकार कर सकते हो??
जब तुम मुजसा एक भी गुण सिद्ध कर पाओगे उस क्षण तुम्हारी चेतना में मेरी दिव्यात्मा अंकुरित होगी और तब तुम में जन्म लेगा कृष्ण और मैं चाहूंगा यह कृष्ण जनमोत्स्व विश्व में हर दिन किसी ना किसी के अंदर मनाया जाए, समग्र विश्व गोकुलमय बनाया जाए।
# सर्वस्य_चाहं_हृदि_सन्निविष्टो
# जन्माष्टमी