कान्हा,ओ मेरे प्यारे कान्हा
तुम कल घर आ जाना
आकर इस ह्रदय में बस जाना
छल ,कपट,प्रपंच,सारे दुर्गुणों को
ह्रदय से तुम बाहर कर जाना
प्रेम , प्रीत, अनुराग,सरस् रसना की
अनुपम मंदाकिनी बहाना
डूब जाऊँ मैं तेरे प्रेम में
प्रेम का वो सागर हो जाना
भक्ति -भाव में खोकर तेरे
मन से राधेमय हो जाऊँ
राधा की वो अनुचरी बनाना
ब्रज की धूल धरूँ इस माथे
कुछ ऐसी कृपा बरसाना
कान्हा ,ओ मेरे प्यारे कान्हा
तुम कल घर आ जाना
बसकर इस ह्रदय में मेरे
फिर कभी वापस न जाना
कान्हा, ओ मेरे प्यारे कान्हा।।।