मे आ रहा हूँ आप मुझे स्वागत-सत्कार के साथ अपने ह्रिदय मे अपनाएगे...?
जानता हूँ आप सब थोड़े चिंतित हैं पर इसलिए तो में आना चाहता हु ना,
और मुझे यह भी स्मरण हे की मेरे मंदिर के द्वार बंद हें,अरे तो क्यां हुआ आपके दिल मेरे मंदिरों से अधिक बड़े भी तो हे ना,
आपको ज्ञात तो होगा की मे भाव का भुखा हुँ भोग का नहीं और में अंतर की पुकार से दोडा हुआ आ जाता हूँ पर आपको सुदामा बनना होगा,
आप यदि मेरे दर्शन मात्र से खुश होना चाहते हो तो मुझे कोई आपती नहीं किन्तु यह जानते हुए कि में हर एक के मन मंदिरों में समाया हुँ और यदि आप औरो को ख़ुद को स्नेह करेंगे तो वही स्नेह मुझ तक मेरे मन भी तो आएगा ना, फ़िर आपको मंदिर जाने की आवश्यकता ही नहीं रहेती ना,
यदि देवकी माँ ने मुझे कारागृह में जन्म दिया उसका भी तो कोई तात्पर्य होगा ना,
पिता वासुदेव मध्यरात्रि को यमुना पार करके गोकुल के यदुवंशज नंदबाबा के पास छोड़ गएँ उसका भी तो कोई तात्पर्य होगा ना,
दाव भैया और में एक साथ रहेने लगे और हमने कंश मामा के भेजे गएँ हर दैत्याकार का संहार किया उसका भी तो कोई तात्पर्य होगा ना,
कंश मेरा मामा होने के बावजूद उन्हे यह अहंकार था की वेह स्वयम् को भगवान मानते थे और उनका यह अंहकार को मीटाना उसका भी तो कोई तात्पर्य होगा ना,
कंश मामा मेरे अंश थे किन्तु देवकी माँ के जितने भी पुत्र हुएँ उनका उन्होंनें हत्याएँ कर दि मगर मेरा जिवंत रहेना उसका भी तो कोई तात्पर्य होगा ना,
कंश मामा इतनें अंधे हो चुके थे कि उन्हें यह स्मरण हीं ना रहा की मे स्वयम् नारायण हुँ और उसी आँखो से मेंने उनके भेजें गएँ हर एक राक्षसों का संहार किया फ़िर भी वो मुझे समझ नहीं पाएँ और उसको समझाना भी तो कोई तात्पर्य से कम नहीं है ना,
अंततः मैंने अपना स्वयम् का रुप दिखाते हुए मेने मामा संबोधते हुएँ कहाँ की हे कंश मामा आज मैंने आपको मेरा असल रुप नारायण से प्रगत हुआ हुँ और यदि मे नारायण हुँ तो मेरा माता देवकी और पिताह वासुदेव से और आपसे क्या संबंध...!!!
फ़िर भी मैंने कंश मामा संबोध के आपको उतना हीं मान दिया हे जितना मेरे क्रिष्ना अवतार में दिता हुँ,
यदि में स्वयम् नारायण इस सारी श्रृष्टि का मुल आधार और उनके हर एक के मनुष्यों एवम् पशुओं में रहने वाला जिन्हें आप भगवान कहेते तो मुझे कोई अभिमान और अहंकार प्रगट नहीं हुआ तो आप तो केवल एक वरदान प्राप्त् किए हुए मनुष्य जिव हे तो आपके अंदर इतना अहंकार क्यूँ,
हे मामा कंश यदि आपको भगवान बनना हे तो स्वयम् एवम् दुसरो के प्रति अपने वरदान का और कर्मो का श्रेष्ठ उपयोग कीजिये,
अपनी प्रजा एवम् दुसरो के प्रति आदर और आदर्श का भाव प्रगट करे तभी आप भगवान बन सकते हे...

।।मुल #कर्म से भटक जो जाई तबहिं अहंकार उत्पन्न होई तबहु बन कंश रावण और अंततः संहार होई।।

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