डर
डर हर रोज डराता है
कभी ये डर
तो कभी वो डर
घर कर जाता है ।
मौका मिलता है
खुशी बांटने का
तो वहां ये डर फिर से
आ जाता है ।
दर्द धमकाता है
डर बहकाता है
कभी तनहाई में
तड़पाता है
कभी महफिल में रुलाता है ।
ये डर ही है
जो इंसान को कुछ भी
हासिल नहीं होने देता
हिम्मत जुटाकर गर
आगे भी बढ़ता तो
डर रहता कहीं
पीछे ना लौट जाऊं
यही डर सभी को डराता है।
सच है कि
डर इतना ज्यादा डराता है
डर डर कर जीने का अब तो
आदत ही पड़ जाता है
डर से आगे बढ़ने का बढ़ने पर
जीत जरूर मिल जाता है ।
पर वहां पर भी
ये डर साथ नहीं
छोड़ पाता है
डर वहां तक साथ होता है
जहां तक इंसान जाता है।
डर है डर डर कर यहां
मुस्कुराना पड़ता है
और नशे में डर से
पीछा छुड़ाना पड़ता है ।
एक रास्ता है
जो मैं इख्तियार करता हूं
डर से ही दोस्ती यार करता हूं
वो जो कहता है
बस वही बार-बार करता हूं ।
साथ हर कदम पर
वो रहता है ,तो रहे
अपनी खुशी से ज्यादा
का वास्ता ही क्या है
डर है जो साथ मेरे
फिर डरना कहां है
ये डर है कहीं जाता कहां है
मंजिल तक साथ
तो डर है
बस इस डर से
अब डरना कहां है।
Arjuna Bunty