वर्तमान का यथार्थ
जो चित्र आप देख रहे हैं ये हमने नहीं,समय ने बनाया है। समय हमें धीरे-धीरे अपने शीशे में उतार रहा है। कभी -कभी मन में प्रश्न उठता है कि जिस शीशे में हम कैद होते जा रहे हैं क्या वह हमारे द्वारा ही तो निर्मित नहीं हुआ है ? पहले हम ऐसे झरोखों से झाँकते थे जहाँ से प्राणवायु हमारे प्राणों का संचालन करती थी लेकिन ये आभासी झरोखे तृप्ति नहीं खुशी के मृगमरीचिका भर हैं और कमला है कि हम फ़िर भी मुस्कुराने के लिए मजबूर ।
-कल्पना मनोरमा