# आधा
आधी सी ये ज़िंदगी क्यों जी रहे हैं हम सभी ?
आसमान आधा न ,न आधी है ये नम ज़मीं |
ज़रा-ज़रा महक तो ले ,ज़रा -ज़रा चहक तो ले
ये ज़िंदगी का फ़लसफ़ा ,इसे ज़रा समझ तो ले !
पूर्ण शांत मन से हम सभी यहाँ पे जी सकें ,
शांत मन हो हम सभी का स्नेह-दान से भरें |
स्नेह-दीप जब जलें तो घृत हो उनमें प्यार का ,
और मन की शांति का, स्नेह का ,दुलार का |
ये छोटी सी तो ज़िंदगी इसे क्यों पूरा जीएँ न ?
अमृत हमारे मन में है , क्यों इसे हम पीएँ न ??
प्रश्न छोटा सा मगर ,मुखर सभी के मन में है |
समाधान इसका देख अपने मन-आँगन में है | |
डॉ. प्रणव भारती