ये दिल अब खराब है
ऐसा खराब कि बर्गे-मुर्सरत तो क्या इसमें खारे-अलम तक नहीं है
न जश्न-ए-बहारां,
न मातम खिजां का
ये दिल अब खराब है लेकिन हमेशा खराब नहीं था
खिले थे यहां फूल भी आरजू के
चुभे थे यहां खार भी जुस्तजू के
ये दिल अब खराब है लेकिन सदा बेनियाजे-बहारो-खिजां तो नहीं था
मैं वो आशिके-रंगो-बू हूं कि जिसने
लहू अपना सर्फे-बहारां किया था।