# आज की प्रतियोगिता "
# विषय .हिम्मत "
# विधा .कविता ***
तुझसे मिलने की ,हिम्मत नहीं जुटा पाता ।
तुझसे किए वादें ,नहीं निभा पाता ।।
क्या करुँ दिल ,के हाथों मजबूर ठहरा ।
तुझे अपना भी ,नहीं बना पाता ।।
देखता रहता हूँ ,तेरी चाँद सी सूरत ।
लेकीन उसे अपना ,भी नहीं बना पाता ।।
कहने को तो तुम ,मन के मीत हो ।
तेरे साथ दो कदम ,चल नहीं पाता ।।
तेरी मूरत तो ,नयनों में रखी सजा ।
पर उसे एक पल ,देख भी नहीं पाता ।।
बृजमोहन रणा ,कश्यप ,कवि ,अमदाबाद ,गुजरात ।