इन्तजा़र का अलम है ,नज़र बस डगर पर है
खो गइ खुबसुरती , सुनी सुनी सी डगर है
ना सुनाते है गाने, बडे पंछी बन गये सयाने है
हसीन हुश्न बगीयन का , अब मुरझाने लगा है
सुबह से शाम , कोइ खास आम बात नही है
ठहर गया है पल , बिछड गये थे वहां खडा है
मन भावन कुछ नज़र, तो नही आता है दिल
दर्दे गम़ तन्हाई में दिल,जीअरा गभरा ही रहा है
ना होश है ना फुरसत दिल , बेचेनी बरकरार है
तन्हा तन्हा मौसम दिल, फिजा़ का बरकरार है