"मनुष्य" स्वयं ही अपने आनंद का स्रोत हैं। ज्ञानिजन कहते है कि "शून्य में विराट समाया हैं और इस विराट में भी शून्य हैं"। जो इस शरीर में रह कर ही, "भगवान्" के विराट रूप को समझ पाता हैं,
वहीं "आध्यात्मिक" हैं।
🙏Anil Mistri🙏
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