उत्साही से निरूत्साह की ओर
बागी चला है बलि वेदी से....
सन्यास राह की ओर !
ऐसा भी क्या हुआ इस भोर..?
की तमाम रोशनियां रात में बदल गईं
कोमल आसमानी ख्वाब की कलियां
सख्त ज़मीनी पत्थर की हयात में बदल गईं!
बदल गई सारी भावनाएं... कल्पनाएं.. आशाएं..
मिथ्या है क्या.. क्या है सत्य.. सुकोमल या कि कठोर...!!

#उत्साही

Hindi Poem by मिन्नी शर्मा : 111491867

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