# आज की प्रतियोगिता "
# विषय .गीला "
# कविता***
मुझे तुमसे ,कोई गीला नहीं ।
मुझे तुमसे ,कोई शिकवा नहीं ।।
तुम को पाना ,मेरा ध्येय ठहरा ।
तुम्हारी बेकर्दी का ,गीला नहीं ।।
तुम सुदंरता का ,खजाना ठहरी ।
तुम्हारे हुस्न का ,मुझे गीला नहीं ।।
तुम कोयल जैसी ,कुंहूक हो ।
तुम्हारी कडवी बोली ,का गीला नहीं ।।
तुम हुस्न की ,शहजादी हो ।
तुम्हारे नखरों का ,कोई गीला नहीं ।।
तुम कजरारी ,मृगनयनी हो ।
तुम आँख फिरा दो ,मुझें गीला नहीं ।।
बृजमोहन रणा (बृजेश ) ,कश्यप ,अमदाबाद ,कवि ,गुजरात ।