बुंदेलखंड की वीरांगना रानी दुर्गावती बलिदान दिवस 24 जून को है।
रानी दुर्गावती का, हुआ अमर इतिहास.....
रानी दुर्गावती का, हुआ अमर इतिहास।
वीर पराक्रम शौर्य की, बजी दुन्दभी खास।।
पंद्रह सौ चौबीस में, कीर्ति पिता की शान।
दुर्गाष्टमी पर्व पर, कन्या हुयी महान।।
माँ दुर्गा का रूप थी, दुर्गावती सुनाम।
मात पिता हर्षित हुये, माँ को किया प्रणाम।।
राजमहल के भा गये, तरकश, तीर, कमान।
बच्ची बढ़ युवती हुयी, सभी गुणों की खान।।
सुतवधु नृप संग्राम की, दलपत की थी जान।
चंदेलों की लाड़ली, गौंड़वंश की शान।।
पति दलपत के निधन पर, थामी शासन-डोर।
सिंहासन पर बैठ कर, पाई कीर्ति-अँजोर।।
किया सुशासन निडर हो, फैली कीर्ति जहान।
नन्हें वीर नारायण, थे दुर्गा की जान।।
शासन सोलह वर्ष का, रहा प्रजा में हर्ष।
जनगण के सहयोग से, किया राज्य-उत्कर्ष।।
ताल, तलैयाँ, बावली, खूब किये निर्माण।
सुखी रही सारी प्रजा, पा विपदा से त्राण।।
सोने की मुद्राओं से, भरा रहा भंडार।
चौकस रह कर योद्धा, अरि पर करें प्रहार।
शत्रु दलों के आक्रमण, विफल किये हर बार।
रण कौशल में सिद्ध थे, सेनापति-सरदार।।
थे दीवान अधार सिंह, हाथी सरमन साथ।
दुश्मन पर जब टूटते, शत्रु पीटते माथ।।
बाज बहादुर को हरा, किया नेस्तनाबूत।
बुरी नजर जिनकी रही, गाड़ दिया ताबूत।।
अकबर को यश खल गया, करी फौज तैयार।
आसफखाँ सेना बढ़ा, आ धमका इक बार।।
रानी समरांगण गईं, हो गज पर आरूढ़।
रौद्ररूप को देखकर, भाग रहे अरि मूढ़।।
अबला को निर्बल समझ, आये थे शैतान।
वीर सिंहनी भिड़ गयी, धूल मिलाई शान।।
वीरों का सा आचरण, डटी रही दिन रात।
भारी सेना थी उधर, फिर भी दे दी मात।।
जून मास चौबीस को, आया असमय पूर।
नर्रई नाला में घिरी, निकट शत्रु मगरूर
तीर आँख में जब घुसा, तुरत निकाला खींच।
मुगल-सैन्य के खून सेे, दिया धरा को सींच।।
बैरन तोपें गरजतीं, दुश्मन-सैन्य अपार।
मुट्ठी भर सेना लिये, जूझ रही थी नार।।
अडिग रही वीरांगना, अंत सामने जान।
आत्मसमर्पण की जगह, ठान आत्मबलिदान
गरज सिंहनी ने तभी, मारी आप कटार।
मातृभूमि पर जान दे, सुरपुर गई सिधार।।
मरते जीते हैं सभी, यश अपयश की आस।
जीवन उसका सार्थक, जो नित करे प्रयास।।
नारी बनती शक्ति जब, करती अरि का नाश।
तब जाकर रचता कभी, 'दुर्गा' सा इतिहास।।
मनोज कुमार शुक्ल 'मनोज'
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