** कविता **
# विषय .व्यर्थ **
बचपन खैल ,में बिताया ।
जवानी खुब ,नींद भर सोया ।।
बुढापा ने ,बिमारीयों से धेरा ।
बैंक बेलेंस ,को खुब जोड़ा ।।
बंगले ,कार का ,वैभव पाया ।
सजने ,धजने में ,जीवन बिताया ।।
कुछ परोपकार ,न कर पाया ।
अपने गर्व में ,चलता रहा ।।
हर पल दुसरों को ,पटकता रहा ।
मौत का बुलावा ,अब आया ।।
तो आँखों में ,आंसू लाया ।
जीवन अपना ,व्यर्थ गंवाया ।।
कभी प्रभु का ,नाम न ले पाया ।
हाय रे मानव तूने ,मानव जन्म सफल न बनाया ।।
बृजमोहन रणा ,कश्यप ,कवि ,अमदाबाद ,गुजरात ।