मां कहने को तो एक शब्द है,
लेकिन इसमें सृष्टि का आधार समाया।
इस समुद्र की गहराई में जो डूबा,
मोतियों से भरा पिटारा उसके हाथ आया।
परमात्मा ने भी जिसको पूजा,
जिसका स्थान ना ले सके कोई दूजा,
जिसमें विलक्षण शक्ति का भंडार है।
मृत्यु के मुख में जाकर,
जो देती जीवन को आधार है।
ऐसी मां को शत् शत् प्रणाम है।
विपत्ति के आते ही ,जो एक शब्द मुख पे आता है।
जैसे ही आता मानो,
विपत्ति का साया़ मिट जाता है।
दुःख को सुख में बदलने की,
जिसकी क्षमता अपरंपार है।
ऐसी मां को शत् शत् प्रणाम है।
कष्ट सहना, जिसकी आदत में शुमार है।
बीमारी में सब व्यवस्थित रखना, जिसका स्वभाव है।
ऐसी मां को शत् शत् प्रणाम है।
मानसी शर्मा
#रोमांचक