भारत चीन सरहद पर बलिदान हुये सैनिकों की मृत्यु पर रुदन नहीं, गर्व होना चाहिये। युध्द की परिस्थितियों में मूल्य चुकाना ही पड़ता है, वो पुष्प महान हैं जो देवता के चरणों में पहुँचे, वो सैनिक महान हैं जो सीधी लड़ाई लड़कर अपने जीवन को अर्पित करके भी जीत का वरण किया।
ये जो लोग तंज करती पोस्ट्स लिख रहे हैं कि 56 इंच दिखाओ, उनसे प्रश्न करें कि डोकलाम के समय आंखें पृष्ठभाग में घुस गयी थीं क्या? 56 इंच नापने की आकांक्षा हरदम न रखें। आंतरिक मामलों में रोज नापिये, कोरोना के नाम पर, बेलगाम मीडिया के नाम पर, दिन रात नापिये 56 इंच। पर विदेश नीति में वो बस मोदी नहीं हैं, आपके देश के प्रतिनिधि हैं, आपके प्रधानमंत्री हैं। वहाँ आपको उनके साथ खड़ा होना है, सेना के साथ खड़े होना है।
हमें गर्व है कि हमारे पास ऐसा प्रधानमंत्री है जो जमीनें छोड़कर भागता नहीं है। परम आदरणीय नेहरू जी की तरह मोदी भी भाग सकते हैं इलाका चीन के लिये खाली करके। पर मोदी ऐसा नहीं करेंगे।
और हाँ, हमारी सेना तब भी ताकतवर थी अब भी है। इन चीनी क्राई बेबीज को पेलने में हमारा हर जवान सक्षम है। 62 में हार राजनीतिक नेतृत्व की हुई थी, सेना की नहीं।
(चीन में ज्यादातर सैनिक इकलौती संतानें हैं अपने परिवार की जिनको कभी कायदे से डण्डा नहीं पड़ा तो हमारे सैनिक जब इनको तोड़ते हैं तो ये रोने लगते हैं इसलिये हमारी सेना इनको क्राई बेबी बोलती है। हमारे यहाँ के सैनिकों का वो हाल है कि अखाड़े का लतमरुआ ही पहलवान होता है। ये कई भाई बहनों वाले भरे पूरे घर से होते हैं, परिवार भी कलेजा मजबूत किये रहते हैं)
और बलिदानियों की गिनती पर अभी विचलित न हों, नेतृत्व और सेना दोनों पर विश्वास रखें। चीन हमसे सीधी लड़ाई लड़ने की औकात नहीं रखता। न 1962 में रखता था न 2020 में रखता है।
#जय_हिंद_जय_हिंद_की_सेना