गुलाबों खूब लड़े सिताबो खूब लड़ें
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लौटने के अपने सुख होते हैं और दुख भी ,स्मृतियाँ आपको कहाँ ले जाती हैं ये उस पर निर्भर करता है ,गुलाबों सिताबो हमें हमारे बचपन में ले जाती है जहाँ हमारे मोहल्लों में साँप वाले से लेकर कठपुतली वालों तक का आना जाना था ! पूरा बचपन इन सबके पीछे ही बीता और आज भी गुलाबों सीताबो की लड़ाई हमारे कानों में उसी तरह पैबस्त है जैसे बचपन में थी और आज भी हम नहीं जानते कि वे दोनों क्यों लड़ती थी ...। सुजीत सरकार की गुलाबों सिताबो भी लड़ते रहते है और उनके कारण भी स्पष्ट हैं । फिल्म आपको एक एरा में लेकर जाती है जहाँ पुरानी हवेली है धूसर इमारतें हैं पुल के पीछे डूबता सूरज है रूमी दरवाजा है , उसमें से आती जाती बुरखा नवीसें हैं , इमामबाड़ा है ,रिक्शा है ताँगा है ....शहर के बहुत से मोहल्लों के नाम है ..शहर का सबसे पुराना स्कूल (लमार्ट ) है उसकी इमारतें हैं ,बाज़ार है ,मलाई मक्खन वाला है और बहुत कुछ जो किसी पेंटिंग सरीखा लगता है ! मानना पड़ेगा कि शुजीत ने शहर की बहुत सी बारिकीयों को पर्दे पर बख़ूबी उतारा है , सिनेमेटोग्राफ़ी कमाल की है , जिसे देख अपने ही शहर से इश्क हो जाये ...वैसे भी अपने शहर को यूँ पर्दे पर देखना बहुत सुखद लगता है ...
मुझे फ़िल्म में जिस चीज़ ने सबसे ज़्यादा प्रभावित किया वो थी बारिश में भीगती अकेली हवेली ,,,,उसका सूनापन ,उसके उदास आँगन ,उसकी बीच बीच से टूटी रेलिंग , अन्धेरी अकेली सीढ़ियाँ और बारिश में भीगते उसके सदियों पुराने दुख ....कितने तो क़िस्से कहानियाँ छुपे होते हैं इन अकेली उदास हवेलियों में , जिन्हें हम यूँ ही ढपा तुपा छोड आगे बढ जाते हैं ......हम अपना अतीत कहाँ संभाल पाये सब कुछ तो फिसल गया हथेलियों से ,उसे देख ये एहसास और गहरा हो जाता है कि शहर ने क्या क्या तो खो दिया अब जो बचा है वो बस मुल्लमा भर है और कुछ नहीं ।हा फ़िल्म थोड़ी स्लो है शायद ये स्क्रीपट की माँग हो जिसे देखने के लिये बहुत धैर्य की ज़रूरत है , बाँके और मिर्ज़ा की नोक झेंक बहुत ह्यूमर पैदा नहीं करती है ,आप न तो खुल के हंस पाते हैं और न ही उदास , हाँ मिर्ज़ा जरूर खूसड लालची बुढ्ढे लग रहे ...अगर उनकी नक़ली नाक न भी लगाई गई होती तब भी काम चल सकता था ...अंत में सारा कमाल बेगम के हिस्से आया .....औरतों के सदियों से बने बनाये ढाँचे को धत्ता बता वे एक रास्ता दिखाती हैं कि अगर मन को ठीक न लगे तो रास्ते किसी भी उम्र में बदले जा सकते हैं ......अपने दृश्यों ,स्थानीयता ,और भाषा में फिल्म शानदार है ,कुल मिला कर जिसे अपने शहर से प्यार है उसे ये फिल्म देखनी ही चाहिये .....
@सीमा सिंह