था कभी खुशियों का समा
थी कभी नादानीया
और मजा था बडा
वो स्कुल की मस्ती
वो साथ मिलकर डब्बा खाना
वो दोस्त की शरारत
वो सभी को परेशान करना
और घरवालों की प्यारी सी डांट
सब था कभी बचपन में
तब था बडे होने का चस्का
आज बडे होकर पता चला
की वो बचपन चाहे जैसा भी था
पर ये जिम्मेदारियों से अच्छा था