मैं कौन हूं? कौन हूं मैं?
जब भी यह सवाल किसी से करती हूं,
कोई कहता हूं एक बेटी,
कोई अपनी बहू बताता है।
कोई कहता उसकी बहन हूं,
कोई बुआ, मामी, चाची, ताई बुलाता है।
कोई बताता पत्नी अपनी,
कोई पुत्र बन हक जताता है।
कोई कहता घर की इज्ज़त हूं,
कोई दहेज की चिंता बताता है।
पर कोई न कहता मैं भी इंसान हूं,
इसलिए कोई भी इंसानियत से पेश नहीं आता है।
"प्रज्ञा चांदना"