#60_70_का_दशक_और_हिंदी_सिनेमा
फिल्मे हम सभी देखते हें।एक नायक होता हे एक नायिका होती है।और उन लोगो का रायता फैलाने के लिए होता हे एक खलनायक।पर खलनायक अकेला कुछ नही कर सकता, उसको राज़ करने के लिए जरूरत होती हे शक्तिशाली और हिम्मतवाले साथियों की।जो खलनायक के प्रभाव को खौफजदा बनाने के लिए कुछ भी कर गुजरते हें ।
आप सभी ने पुरानी फिल्मो में खलनायक के पीछे हाथ बांधे बड़ी मुस्तेदी से इन्हें खड़ा देखा होगा।जो अपने बॉस के एक इशारे पर मरने मारने को तैयार।
कोई भी काम हो , खलनायक की राह में रोड़ा बनते ईमानदार इंस्पेक्टर को रस्ते से हटाना हो या फिर किसी का अपहरण करना हो,बिना इनकी सहायता के प्राण या अजित साहब एक कदम भी नही चलते थे।बॉस बस एक इशारा कर दे चुटकी बजाकर या आँखों को नचाकर ये फ़ौरन ताड़ जाते थे की इनको क्या करना हे।राबर्ट ,मोना डार्लिंग, साम्भा, इनका योगदान अतुलनीय हे भारतीय फिल्म इतिहास में ।शेट्टी भाई ने तो ना जाने कितनी फिल्मो में लोहे का सरिया तिरछा करने का कारनामा किया होगा।
अजित, प्राण,जीवन, प्रेम चोपड़ा,अमज़द खान, प्रेम नाथ, मदन पुरी, अमरीश पुरी ये सभी नाम तो हमारे दिलो दिमाग में जम गये हें, पर इनके रुतबे को फ़िल्मी दुनिया में अत्यंत प्रभाव शाली बनाने वाले ये कलाकार कितनो को याद होंगे??
सबसे अहम बात इन फिल्मों में नायक का पिता ईमानदार जरूर होता था जो अपनी शारीरिक क्षमता को ताक पर रखते हुए बड़ी बड़ी हस्तियों से पंगे लेने से बाज़ नही आता था। फिर अजीत साहब मदन पुरी या प्राण आदि खलनायकों द्वारा अपने परिवार को रोता बिलखता छोड़ परमधाम की यात्रा पर निकल जाता।फिर जलती चिता पर आँखों में शोले भर बेटे का इंतकाम की कसम खाना जिसके बड़ा होकर 99% अमिताभ बच्चन बनने की संभावना प्रबल रहती थी।और हम लोग भी यही देखना चाहते थे।
खेतों की पतली पतली पगडंडियों से जीतेन्द्र या राजेंद्र कुमार का गेहूं की बालियों को टच करते हुए #मितवा शब्द का उच्चारण करते हिरन की तरह कुलांचे भरते हुए आना ही इनकी पहचान हुआ करता था (*मितवा* शब्द इन्ही दोनों के लिए आरक्षित था)।
पुरानी मूवी में भगवान भी जल्दी प्रसन्न हो जाते थे।बस मंदिर में जाकर 2-4 इमोशनल डायलॉग बोलने भर की देर होती थी की बिजली कड़कने लगती घण्टे घड़ियाल बज उठते ,भगवान कई एंगल से पोज़ देते ।आड़े तिरछे ऊपर नीचे ,फिर धीरे से 1 फूल नीचे गिर जाता था , ये इस बात की कन्फर्मेशन होती थी की आपके स्टेट्स को ऊपर वाले का like मिल चुका है।फिर वो होता था जिसकी उस समय कोई कल्पना भी नही कर सकता था।खून से लथपथ लाश से जैसे ही कोई ख़ंजर निकालता था ठीक उसी समय पुलिस का आगमन होता था ।और ये गलतफहमी को खत्म होते देखने के लिए हम पूरी पिक्चर निपटा देते थे।
बहुत बहुत बधाई इस चमत्कारिक रंग पटल को जिसने हमे ईश्वरीय चमत्कारों के दर्शन कराए।अनहोनी को होनी होते दिखाया।दो भाइयों को कुम्भ के मेले में सावधान रहना सिखाया।वरना अब के बिछड़े 3 घण्टे बाद ही जाकर मिलते थे।👍
Atul Kumar Sharma "kumar"