कोरोना की ये कैसी मार,
पैदल चलने को मजदूर लाचार।
जिंदगी की गठरी सिर पे लेकर,
चल पड़ा वो अपने घर के द्वार।
पेट की क्षुधा है बढ़ती जाती,
रास्ते में जिंदगी मिट जाती।
मध्यमवर्ग भी है परेशान,
ना कोई धंधा, ना व्यापार ।
EMI की चिंता है सताती,
बच्चों की फीस भी आंख दिखाती।
आर्थिक स्थिति बिगड़ी जाती,
सरकारी भी कोई मदद न आती।
उच्चमध्यमवर्ग भी है हैरान,
किचन के कैसे निपटाएं काम।
घर पर कोई मेड न आती,
खुद से झाडू डस्टिंग हो ना पाती।
पोंछा लगाएं बिता जमाना ,
कब मिलेगा होटल में जाना।
उच्च वर्ग की भी है आफत में जान,
कम्पनियों के शेयर गिरे धड़ाम।
कैसे करवाए फेक्ट्रियों में काम,
मजदूर छोड़ भागे शहर तमाम।
लोन का ब्याज है बढ़ता जाता,
कारखानों में पसरा सन्नाटा।
बच्चे भी हो गए परेशान,
आॅनलाइन क्लासेस खाए है जान।
पहले तो टीचर ही थी पढ़ाती,
अब तो मम्मी भी है डाँट लगाती।
बाहर खेलने जा नहीं पाते,
घर पर पापा आंखें दिखाते।
अब तो प्रभु आप ही करो कमाल,
इस महामारी को दो तुरंत विश्राम।
"प्रज्ञा चांदना"