Hindi Quote in Poem by Pragya Chandna

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बड़ा आदमी

मां-बाबा मैं कभी नहीं जाना चाहता था गांव छोड़कर,
पर आपने ही मेरी आंखों में उन बड़े सपनों को संजोया था।
पढ़-लिखकर बनूं मैं बड़ा आदमी यह ख्वाब मुझे दिखलाया था।
उस होस्टल की चार-दीवारी में जब मैं पहली बार पहुंचा था,
तुमको और गांव को याद करके तब कितना मैं रोया था ।
वो गुल्ली-डंडा, कंचे और पतंग सब जैसे मुझसे रूठे थे,
मेरे बचपन के सभी संगी-साथी भी तो उस दिन से ही छूटे थे ।
छुट्टियों में जब भी गांव आता तब भी कहां उनसे मिल पाता था,
वो गांव के मास्टर जी से एक्सट्रा पढ़ाई में ही तो मेरा पूरा वक्त निकल जाता था।
राखी के त्यौहार पर पूरी रात मैं रोता रहता था,
अपनी सुनी कलाई देखकर छुटकी की याद में खोया रहता था।
किसी भी त्यौहार पर तुमने गांव न मुझको आने दिया,
तुम्हारी पढ़ाई का होगा नुकसान कहकर हर त्यौहार वहीं बिताने दिया।
अब जब मैं हूं सबकुछ भूल गया, इन शहरों में ही हूं रूल गया,
तो क्यों तुमको मुझसे शिकायत रहती है कि मैं तुम्हें वक्त नहीं दे पाता हूं।
अब मैं तुम्हें कैसे समझाऊं कि मैं तो उन सपनों में ही खुद को खड़ा पाता हूं ,
और बड़े से बड़ा आदमी बनने की चाहत में ही तो दौड़ लगाता हूं।
मां-बाबा तुम्हारे द्वारा आरंभ किए इन सपनों का न जाने कहां अब अंत होगा,
कब मैं फिर दोबारा अपने गांव की गलियों में अपने दोस्तों के संग होऊंगा।

Hindi Poem by Pragya Chandna : 111468805
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