यह है इक पंछी का संदेशा,
इस दफा गर जिंदा रह जाओ तो
हमें भी थोड़ा चहचहाने देना।
मत करना पिंजरों में कैद,
अपना घोंसला खुद बनाने देना।
मत करना इस धरती को बंजर,
हरे-भरे पेड़ों को लहलहाने देना।
विकास के नाम मत करना प्रदूषित,
नदियों को ऐसे ही निर्मल बहने देना।
मत काटना इन पर्वत शिखरों को,
इन्हें ऐसे ही अडिग खड़ा रहने देना।
मत बनाना सिंमेंट-कांक्रिट के जंगल,
प्रकृतिदत्त जंगलों का अस्तित्व बरकरार रहने देना।
मत भागना अंधाधुंध शहरों की तरफ,
इस भारत को गांवों का देश ही रहने देना।
बचा लेना इस प्यारी धरा को,
इस दफा गर जिंदा रह जाओ तो....