#Onset / शुरुआत

तुम,
जो आॉंखों से थे,
मुझको तोलते,
मुख खोलते,
पर बोलते कुछ थे नहीं।

तुम,
जो मंडराते थे मेरे पीछे-आगे,
और जागे रात भर रहते,
मगर कहते नहीं कुछ।

तुम,
उंगलियों की छुअन से भी,
थे घबराते,
मगर आते थे फिर भी पास।

तुम,
जो मुझको देखने आते,
यूं शरमाते,
झुकाते फिर नज़र क्यूं?

तुम,
नहीं कर पाए कुछ,
तब मुझको,
कहनी है ये बात,
किसी को, कहीं से,
करनी ही होगी,
दो शब्दों से शुरुआत।।

Hindi Poem by Yasho Vardhan Ojha : 111456607
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