दिल ज़रूरतमंद
ढूंढे तेरा सहारा
भूला बिसरा पुराना
कोई अकेली नदी का तट
जहां बना नहीं कोई बंध
दिल ज़रूरतमंद।।
तू चल कर आया वहां तक
मुझे खुद में डुबाया कहां तक
मैं तेरी जाने की राह देखती रही
तू चला गया दूर-दूर तक
अपनी आह फेंकती रही
उलझी हुई नदी मैं
बुनती रही आपस में फंद
दिल ज़रूरतमंद।।
#ज़रूरतमंद