जिंदगी यूँ भी
कुछ तो हसीं हो जाती ,
वो हमीं थे जो
ग़मों को समेटते चले गए...
ये तीरगी भी
किसी याद से रोशन हो जाती ,
वो तुम्हीं थे जो
सारे चराग़ साथ लिए चले गए...
ये खामोशी भी
किसी लफ़्ज़ से क़त्ल हो जाती ,
वो हमीं थे जो
बेजुबान-सी सदाएँ दिए चले गए...
ये तनहाई भी
किसी ख़याल से सँवर ही जाती ,
वो तुम्हीं थे जो
सभी एहसास साथ लिए चले गए...
अब तो ये ज़िंदगी...
तीरगी...खामोशी और ...तनहाई
घुल-मिल गई हैं ऐसे ,
मुद्दत से जानती हो
कोई बचपन की सहेली जैसे.....!