36 घंटो कि मुसाफ़िरी के बाद मंजिल आने वाली थी ,मेरी आंखे एक नया आस्मा देखने वाली थी... .धीरे धीरे स्टेशन के नाम अजीब से होने लगे थे एक बार मे तो पढ़ भी ना पाओ वेसे, गुगल पे लगातार लोकेशन देखे जा रही थी के कही स्टेशन छुट ना जाए... रात के लगभग साडे तिन बजे के आसपास दो बस्ते, मे ओर मम्मी-पापा #banglore के आसमान के निचे चाइ पी रहे थे, ठंड काफ़ि थी मेने चादर लपेटि हुइ थी ,एक बुड्ढी अम्मा ने पेसे नही गरम चाइ मांगी थी !
तमिल मे रैल्वे कि सुचना आ रही थी वेसे हमे तो तमिल, तेलुगु , मलयालम, उड़ीया ओर कर्नाटका सारी भाषा एक समान हि लगती है यहां के आसमान का रंग अलग था गेहरा नीला सा ओर हमे इंतज़ार थी सुबह होने कि, गेस्ट रूम हाके सोने कि, एक किताव थी मेरे पास जिसमे गुजरातीओ के लिए सारे गेस्ट हाउस ओर धर्म शाला के पता था....
मे पन्ने पलट रहि थी लोकेशन देख रही थी साथ हि सुबह हो रही थी.... .
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