तुम मेरी हो प्रियतमा
सागर किनारे
जब मैं निकलता हूँ
प्रकृति की आगोश में
टहलने के लिए, तो डूबते
सूरज को देखकर
तुम्हें याद करता हूँ
मन्द-मन्द बहती हुई
हवाओं के बीच
इन चहकते हुए
पंछियों को देखकर
तुम्हें याद करता हूँ
चाँदनी रात में
खिड़की से जब भी
चाँद को देखता हूँ
बस,तुम्हें याद करता हूँ
यह मत पूछो
तुम्हें कितना याद करता हूँ?
बस जान लो
हर लम्हा,हर पल
तुम्हें ही अपने
पास पाता हूँ
कभी-कभी मन
करता हैं
इन हवाओं से पैगाम भेज दूँ
कोई खत-ए-पैगाम
तुम्हारे नाम भेज दूँ,लेकिन
यादों का सहारा है इस दिल में
क्योंकि दिल से तुम्हें याद करता हूँ
:कुमार किशन कीर्ति
युवा लेखक,शायर,कवि