चलो तुम कहते हों, तों, पतंग बन जाती हूं.... क्या तुम मुझे और मेरी डोर को संभाल लोगे??? आकाश की ऊंचाइयों को छूने की चाहत हैं, मेरी, क्या तुममें हैं, हिम्मत... मुझे थामें रखने की???? हवा का रुख मोड़ लाता है नया, क्या नए मोड़ पर तुम, रहोगे साथ??? या, पेंच लड़ा किसी और से, छोड़ दोगे, लुटने गैरों के हाथ??? इश्क़ पे तुम्हारे शक नहीं है, बस परख रही हूं, तुम्हारी औकात....!!!!