# आज की प्रतियोगिता "
# विषय .पतंग "
# कविता "
पतंग आसमान ,में उड़ता ।
अपनी निराली ,छटा बिखेरता ।।
हवा के साथ उड़ता ,हुआ इतराता ।
पतंग दुसरों के ,इशारे पर नाचता ।।
कोई उसे बीच में ,काट भी डालता ।
अस्तित्व हीन सा ,नीचे गिर पड़ता ।।
हमारा जीवन ,भी पतंग सा होता ।
डोर हमारी ,ईश्वर के हाथ होती ।।
वह जैसे चाहे ,हमें नचाता ।
हमें उसके इशारों ,पर नाचना पड़ता ।।
आज मानव ,असहाय सा होता ।
अपनी मरजी ,से जी नहीं पाता ।।
उसका जीवन ,पल भर का होता ।
फिर भी वह ,बहुत इतराता ।।
बृजमोहन रणा ,कश्यप ,कवि ,अमदाबाद ,गुजरात ।