भगवान विष्णु को प्रिय है शंख, लेकिन फिर भी बदरीनाथ धाम में नहीं होता शंखनाद
धाम में शंख न बजने का कारण महात्मा लोग बताते हैं। उनका कहना है कि यहां बदरीनाथ में भगवान ध्यानमुद्रा हैं। उनका योग भंग न किया जाए, इसलिए यहां शंखनाद नहीं होता है।
मान्यता यह भी है कि वृंदा ने यहां तुलसी के रूप में तपस्या की थी और उसका विवाह शंखचूड़ से हुआ था। वृंदा साक्षात मां लक्ष्मी हैं। उसके बाद भगवान विष्णु ने उन्हें धारण किया था। मां लक्ष्मी को यह याद न आए कि शंखचूड़ से मेरा विवाह हुआ है। इसलिए धाम में शंखनाद नहीं होता।
धाम में लक्ष्मी तुलसी के रूप में तपस्या करती हैं। मां लक्ष्मी को अपना पूर्व चरित्र याद न आए, इसलिए यहां शंख बजने की परंपरा नहीं है। ऐसा शास्त्रों में भी लिखा है।
बदरीनाथ मन्दिर में नर-नारायण विग्रह की पूजा होती है और अखण्ड दीप जलता है, जो कि अचल ज्ञानज्योति का प्रतीक है।